शनिवार, २८ मे, २०१६

एकायतन



मी आत्मस्वरूप 
पाहतो सर्वात 
राहतो निवांत 
आत्मानंदी 

एक मीच आहे 
सकळ जगात 
वर्ततो सर्वात 
एकटा मी 

उच्च नीच काही 
भेद ना उरला 
अवघाच झाला 
सदानंद 

ईश्वरे व्यापिली 
ब्रह्मांडे समग्र 
सारे अमुलाग्र 
आत्मतत्व 

आत्मा परमात्मा 
हे एकायतन 
कसे मी भजन 
करू देवा 

अहंकार गेला 
नाहीसा होऊन 
झालो आता लीन 
सर्वांपायी 

ॐ 

माता भगवतिके श्री चरणोंमें समर्पित

*

DEDICATED TO THE DIVINE LOTUS FEET OF MOTHER GODDESS BHAGAVATI

*



इश्वरसे अभिन्नता जीवका मूल धर्म है जो किसीभी तरीकेसे कभीभी बदलता नहीं. जैसे तरंग और समुन्दर कभी जुदा नहीं होते वैसेही जीव अपने परमात्म स्वरूपसे कभीभी जुदा नहीं होता. Being connected to the God is the religion of all, which can never be changed. The God is not separate and not distinct from his creation, just like a wave is not separate or distinct from the ocean.