सोमवार, ३ नोव्हेंबर, २०१४

एकला



   सर्वव्यापक मी   
गोविंद सगुण 
हरी नारायण 
एकला मी 

असा मी साकार 
तसा निराकार 
दोन्हीही प्रकार 
एकला मी   

अनंत ब्रह्मांडे 
मीच पसरलो   
कृष्ण छोटा झालो   
एकला मी 

एकदेशी किंवा 
व्यापक निर्गुण 
लटका हा प्रश्न 
एकला मी   

देहधारी मीच 
विदेहीही मीच 
परब्रह्म मीच 
एकला मी   

स्पर्श माझा घ्यावा 
नेत्रांनी पहावा 
कानांनी ऐकावा 
एकला मी   

भक्त भगवंत 
ऐक्य मीच आहे 
ब्रह्मानंद आहे 
एकला मी   

त्रिखंड जगती 
मजवीण नाही 
दुसरा कुणीही 
एकला मी    

दुजिया सापेक्ष 
एकपणा असे 
एक म्हणू कैसे 
एकला मी 

ब्रह्म म्हणू जाता 
अहं पुढे आला 
ऐसा कैसा झाला 
वेडाचार  

एकलेपणाची 
नजर लागली 
सुखाला लागली 
ठेच कैसी 

शेष अहंकार 
उरला सुरला 
तोही म्या दिधला 
गुरुपदी 

सद्गुरुचरणी 
विलीन मी झालो 
नि:शेष उरलो 
पूर्णब्रह्म  


    सच्चिदानंद व    
आनंदस्वरूप 
शांततास्वरूप
सर्व काही   

राम कृष्ण हरी 
साक्षात जाहलो 
आता ना ठरलो 
एकला मी 

आलम दुनिया 
राम कृष्ण आहे 
नाही असे नोहे 
जगी काही 

सर्वत्र दिसती 
दयाळू सद्गुरु 
कुठे कुठे करू 
नमस्कार 

कैवल्य पडले 
झोळीमध्ये माझ्या 
करुणेला तुझ्या 
पार नाही 


अहम् ब्रह्मास्मि 
ॐ 



माता भगवतिके श्री चरणोंमें समर्पित

*

DEDICATED TO THE DIVINE LOTUS FEET OF MOTHER GODDESS BHAGAVATI

*



इश्वरसे अभिन्नता जीवका मूल धर्म है जो किसीभी तरीकेसे कभीभी बदलता नहीं. जैसे तरंग और समुन्दर कभी जुदा नहीं होते वैसेही जीव अपने परमात्म स्वरूपसे कभीभी जुदा नहीं होता. Being connected to the God is the religion of all, which can never be changed. The God is not separate and not distinct from his creation, just like a wave is not separate or distinct from the ocean.